बिहार से राज्यसभा की 10 सीटें जाएंगी एनडीए की झोली में! विपक्ष की उम्मीदें और धुंधली

बिहार चुनाव में एनडीए की भारी बढ़त के बाद राज्यसभा की 10 सीटों का समीकरण बदल गया जिससे केंद्र सरकार को ऊपरी सदन में मजबूत संख्या मिलने की संभावना और बढ़ी

बिहार से राज्यसभा की 10 सीटें जाएंगी एनडीए की झोली में! विपक्ष की उम्मीदें और धुंधली
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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राजनीतिक हलकों में एक नई सुगबुगाहट तेज हो रही है. यह सवाल सभी पार्टियों के रणनीतिकारों के जेहन में है कि राज्यसभा की 10 सीटों पर कौन काबिज होगा. ताजा स्थिति देखकर लगता है कि यह पूरा मुकाबला एनडीए के पक्ष में झुक चुका है. चुनाव परिणामों ने विपक्ष को ऐसा झटका दिया है कि सीटों की गणना उसके पक्ष में नहीं बैठ रही.

बिहार में किसी उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने के लिए 42 विधायकों का समर्थन जरूरी है. एनडीए के पास इस समय 202 विधायक हैं जो पहली ही प्राथमिकता में कई सीटों को सुरक्षित कर देते हैं. इसके मुकाबले विपक्ष की संख्या इतनी कम रह गई है कि उसके लिए एक भी सीट निकाल पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है. राजद की अब तक की तीन सीटें भी इस नए गणित में फिसलती नजर आती हैं.

राज्यसभा की 245 सदस्यीय संरचना में अभी एनडीए 133 सदस्यों के साथ बैठा है. बिहार की 10 सीटें भी उसी के खाते में चली जाती हैं तो केंद्र सरकार के लिए आने वाले वर्षों में विधायी कामकाज काफी आसान होता दिखेगा. कई विधेयक जो अक्सर ऊपरी सदन में अटक जाते हैं उन्हें पारित कराने में भी यह संख्या मदद करेगी.

अगले वर्ष जिन पांच सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, उनमें प्रेमचंद गुप्ता, एडी सिंह, हरिवंश, रामनाथ ठाकुर, उपेन्द्र कुशवाहा जैसे नाम शामिल हैं. इन सीटों पर एनडीए की पकड़ पहले से ही मजबूत मानी जा रही है. दूसरी वरीयता वाले वोटों में भी विपक्ष के लिए रास्ता लगभग बंद है क्योंकि उसके विधायकों की गिनती 42 से काफी नीचे अटक गई है.

2028 में खत्म होने वाले कार्यकाल की सीटों पर भी अब तस्वीर साफ होती जा रही है. इनमें फैयाज अहमद, सतीश चंद्र दुबे, मनन कुमार मिश्रा, शम्भू शरण पटेल, खीरू महतो.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि विधानसभा में एनडीए की बड़ी बढ़त ने आने वाले वर्षों के संसदीय समीकरण को गहरे प्रभावित किया है. विपक्ष के लिए राज्यसभा में अपनी आवाज बनाए रखना और कठिन हो जाएगा क्योंकि सदस्यों की संख्या सीधे उसकी ताकत से जुड़ी है.

कुल मिलाकर बिहार का यह चुनाव सिर्फ राज्य की सत्ता का सवाल नहीं रहा. इसके असर ने दिल्ली की ओर बढ़ने वाली राजनीतिक राह को भी बदल दिया है. राज्यसभा का अगला अध्याय एनडीए के लिए मजबूत और विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण होता दिख रहा है.

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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