साबुन और क्लीनर के ज्यादा प्रयोग से बढ़ा ड्रग रेजिस्टेंस का खतरा, इलाज हो सकता है बेअसर

अस्पतालों का गंदा पानी, बेतरतीब दवा इस्तेमाल और स्किन केयर क्रीम में मिलने वाले एंटीबायोटिक मिलकर ऐसे कीटाणु पैदा कर रहे हैं जिन पर दवा काम नहीं करती और यही असर अब घरों तक पहुंच रहा है

घरेलू साबुन और एंटीबैक्टीरियल क्लीनर के अत्यधिक इस्तेमाल से फैलते दवा प्रतिरोधी कीटाणुओं का दृश्य जिसमें सिंक के पास रखे सफाई उत्पाद और बैक्टीरिया के संकेत दिखते हैं
X

हैदराबाद के डॉक्टरों ने चेताया है कि रोगाणुरोधी दवाओं का असर खत्म होना यानी एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस अब सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं रहा. अंग्रेजी अखबार Deccan Chronicle में छपी खबर के अनुसार, यह खतरनाक प्रक्रिया रोजमर्रा की जिंदगी में भी फैल रही है. शुरुआत उस आदत से होती है जिसमें लोग एंटीबैक्टीरियल साबुन, सतह साफ करने वाले क्लीनर और बिना जरूरत वाली स्किन केयर क्रीम का ज्यादा इस्तेमाल कर लेते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह मिलकर ऐसे कीटाणु पैदा कर रहे हैं जिन पर दवाएं असर नहीं करती.


डॉक्टर कहते हैं कि एएमआर (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) जागरूकता सप्ताह भले शुरू हो गया है, लेकिन समस्या निगरानी क्षमता के मुकाबले कहीं अधिक तेजी बढ़ रही है. आम घरों में इस्तेमाल होने वाले एंटीबैक्टीरियल क्लीनर सामान्य बैक्टीरिया को तो खत्म कर देते हैं और पीछे ऐसे कीटाणु छोड़ जाते हैं जिन पर साधारण दवाएं काम नहीं करती. विशेषज्ञों के मुताबिक इन उत्पादों का रोज उपयोग करना न जरूरी है और न सुरक्षित.


डेक्कन क्रॉनिकल के मुताबिक Dermatologist यासमीन बेगम ने बताया कि चेहरे के लिए मिलने वाली एंटीबायोटिक आधारित क्रीम और जेल भी स्थिति को ज्यादा बिगाड़ते हैं. उन्होंने कहा कि क्लिंडामाइसिन जैसे जेल महीनों तक लगाने से त्वचा पर मौजूद सामान्य जीवाणु भी दवा प्रतिरोधी बन जाते हैं. इसके बाद भविष्य के संक्रमण ज्यादा मुश्किल से ठीक होते हैं. वह बताती हैं कि जहां संभव हो, benzoyl peroxide, salicylic acid जैसे गैर एंटीबायोटिक विकल्प पहले आजमाने चाहिए, वह भी डॉक्टर से सलाह लेने के बाद.


इधर शहर के इंटरनल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. सहस्रा कादियम बताते हैं कि अब साधारण मूत्र संक्रमण और सांस से जुड़े हल्के संक्रमण भी शुरुआती इलाज में दी जाने वाली दवाओं का जवाब नहीं दे रहे. उन्होंने कहा कि ये मरीज सामान्य लोग हैं. न अस्पताल में भर्ती और न गंभीर. यह बदलाव समुदाय स्तर पर बढ़ती दवा प्रतिरोधकता का संकेत है.


डॉ. जगदीश यादव ने एक और पहलू बताया. लापरवाही से इस्तेमाल के बाद दवा फेंकना, क्लीनिक और सैलून में कमजोर संक्रमण नियंत्रण और लोगों का लगातार इधर उधर जाना सब मिलकर दवा प्रतिरोध को तेज फैलाते हैं. उन्होंने कहा कि दवा प्रतिरोधी कीटाणु चुपचाप घरों में घर कर जाते हैं और बिना लक्षण दिखाए लंबे समय तक मौजूद रहते हैं.



अस्पतालों का गंदा पानी, दवा कंपनियों के बहने वाले अपशिष्ट और बिना जांच छोड़े जाने वाले रासायनिक मिश्रण भी उन जगहों पर कीटाणु पैदा करते हैं जहां सामान्य लोग खतरा महसूस भी नहीं करते. डॉ. कादियम बताती हैं कि जब गंदे पानी की सफाई व्यवस्था उचित न हो, तो दवा प्रतिरोधी जीवाणु पानी के साथ दूर दूर तक बहकर चले जाते हैं. कई बार व्यक्ति समझ भी नहीं पाता कि संक्रमण का कारण सिर्फ दूषित पानी था.


पशुओं और समुद्री भोजन से जुड़ी दवा प्रतिरोधकता भी बढ़ रही है. एआईजी हॉस्पिटल्स के डॉ. हार्दिक बताते हैं कि डेयरी और पोल्ट्री में एंटीबायोटिक का लगातार इस्तेमाल ऐसे कीटाणु पैदा कर रहा है जो दूध, मांस और मछली के साथ मानव शरीर में पहुंच जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह चक्र इंसान, पशु और पर्यावरण को एक ही संकट में बांध रहा है.


विशेषज्ञ चेताते हैं कि जब पशुओं का अपशिष्ट खाद के रूप में खेतों में जाता है, तो उसमें मौजूद दवा अवशेष मिट्टी और पानी को दूषित करते हैं. इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे कीटाणुओं से भर जाता है जिन पर दवाएं असर नहीं करती. यह स्थिति आने वाले वर्षों में साधारण बीमारियों को भी बड़ा खतरा बना सकती है.


डॉक्टरों की राय है कि रोकथाम छोटी आदतों से शुरू होती है. जरूरत के बिना एंटीबायोटिक न लेना, दवा की पूरी अवधि पूरी करना, एंटीबैक्टीरियल उत्पादों का सीमित उपयोग और दवाओं का सुरक्षित निपटान सबसे जरूरी कदम हैं. उनका कहना है कि यदि ये आदतें समय रहते नहीं बदली गईं, तो दवा प्रतिरोध आने वाली पीढ़ियों के लिए और बड़ी चुनौती बन जाएगा.


Tags:
Next Story
Share it