मासिक धर्म में व्रत रखना सही या गलत? जानें धार्मिक दृष्टिकोण और सामाजिक धारणा

अक्सर ऐसा होता है कि किसी विशेष व्रत या त्योहार के दिन महिलाओं को मासिक धर्म (पीरियड्स) शुरू हो जाता है, जिससे वे मानसिक दुविधा में पड़ जाती हैं कि ऐसे समय में उपवास रखा जाए या नहीं, पूजा-पाठ करें या ना करें। यह विषय वर्षों से धार्मिक और सामाजिक चर्चाओं का हिस्सा रहा है, लेकिन आज के युग में इसे समझने की आवश्यकता तर्क, स्वास्थ्य और परंपरा के संतुलन के साथ है।
हिंदू धर्म की पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कुछ धार्मिक कार्यों से दूर रहने की सलाह दी जाती रही है। इसके पीछे यह विचार था कि इस समय शरीर थका हुआ होता है और स्त्री को आराम की आवश्यकता होती है। कई प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में इसे ‘अशुद्धि’ के रूप में देखा गया, हालांकि आधुनिक दृष्टिकोण इसे एक प्राकृतिक और पवित्र प्रक्रिया मानता है।
क्या मासिक धर्म में व्रत रखना उचित है? धार्मिक ग्रंथ क्या कहते हैं
यदि हम शास्त्रों की ओर देखें, तो मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के लिए कुछ धार्मिक गतिविधियों से विरत रहने की बात कही गई है। विशेषकर पूजा-पाठ, मंदिर प्रवेश और यज्ञ जैसे कर्मों में दूरी रखने की परंपरा रही है। हालांकि, उपवास रखने को लेकर सीधे तौर पर किसी भी ग्रंथ में पूर्ण निषेध नहीं है।
कुछ पंडित और धर्माचार्य मानते हैं कि यदि महिला मानसिक रूप से स्थिर और शारीरिक रूप से स्वस्थ है, तो वह मासिक धर्म में भी व्रत रख सकती है, लेकिन पूजा-पाठ और मंत्रोच्चार से दूरी बनाए रखना उचित होता है। वहीं कुछ लोग इसे पूरी तरह से त्याग देने की सलाह देते हैं, ताकि शरीर को आराम मिल सके और कोई धार्मिक उल्लंघन न हो।
स्वास्थ्य की दृष्टि से क्या कहता है विज्ञान? क्या व्रत रखना ठीक रहेगा?
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे थकावट, दर्द, चिड़चिड़ापन और कमजोरी जैसी स्थितियां सामान्य होती हैं। ऐसे समय में यदि उपवास रखा जाए, खासकर निर्जल या कठोर व्रत, तो यह शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है।
डॉक्टरों की राय है कि मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं को पर्याप्त पोषण और जल की आवश्यकता होती है। यदि किसी महिला का शरीर उपवास सहन कर सकता है, तो हल्का उपवास या फलाहार किया जा सकता है, लेकिन किसी भी सख्त नियम को पालन करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
समाज और आस्था के बीच महिलाओं की भूमिका: बदलती सोच, नया नजरिया
आज की नारी शिक्षित है, जागरूक है और अपने शरीर को बेहतर तरीके से समझती है। बदलते सामाजिक परिवेश में बहुत-सी महिलाएं मासिक धर्म को एक सामान्य जैविक प्रक्रिया मानती हैं और इन दिनों में भी अपनी भक्ति व उपवास जारी रखती हैं। कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं अब इस विषय पर खुलकर चर्चा कर रही हैं और बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
धर्मशास्त्रों का उद्देश्य कभी भी किसी को हीन महसूस कराना नहीं रहा, बल्कि जीवन को संतुलित और सहज बनाना रहा है। इसलिए यदि कोई महिला अपने स्वास्थ्य और परिस्थितियों के अनुसार व्रत रखना चाहती है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। जरूरी है कि वह खुद के शरीर और ऊर्जा को समझकर निर्णय ले।
धर्म और विज्ञान के संतुलन के साथ तय करें अपना रास्ता
मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, न कि कोई अशुद्धि। यदि आप व्रत के दिन इस अवस्था में आती हैं, तो यह जरूरी नहीं कि आप दोषी महसूस करें या धार्मिक नियमों को लेकर अत्यधिक तनाव में रहें। आप चाहें तो मानसिक भक्ति, ध्यान, जप आदि के माध्यम से भी व्रत का पालन कर सकती हैं।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।