अक्षय तृतीया पर होती है देवी मातंगी की विशेष आराधना, जानिए क्यों है यह तिथि तांत्रिक उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ

आज के पावन दिन अक्षय तृतीया पर देवी मातंगी जयंती का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ देशभर में मनाया जा रहा है। यह पर्व देवी मातंगी की आराधना का विशेष दिन होता है, जो दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं। देवी मातंगी को वाणी, कला, संगीत और तंत्र की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। मान्यता है कि जो साधक इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ माता की पूजा करता है, उसे वाक् सिद्धि, ज्ञान और तांत्रिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
मातंगी देवी को त्रिपुरा सुंदरी का उग्र रूप माना जाता है। इनकी पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधकों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। उन्हें 'उच्छिष्ट चांडाली' भी कहा जाता है, जो सीमाओं से परे जाकर साधना और ध्यान की राह पर अग्रसर करती हैं। अक्षय तृतीया की पुण्य तिथि पर देवी की पूजा करना साधकों को मानसिक स्थिरता, वाणी की तेजस्विता और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।
कैसे करें मातंगी जयंती पर पूजा? जानिए विधिपूर्वक पूजन की संपूर्ण प्रक्रिया
मातंगी जयंती के अवसर पर प्रातः स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा स्थल पर बैठें। देवी मातंगी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पीले या हरे वस्त्रों में सुशोभित देवी की पूजा के लिए हल्दी, अक्षत, कुमकुम, चंदन, सुगंधित पुष्प, नैवेद्य और खासकर नीम की पत्तियों का प्रयोग करें।
मातंगी का बीज मंत्र “ॐ ह्रीं ऐं मतंग्यै फट् स्वाहा” का 108 बार जप करें। इसके साथ देवी को पान, सुपारी और मिठाई का भोग अर्पित करें। सांयकालीन पूजा में दीपदान के साथ तांत्रिक मंत्रों का उच्चारण विशेष फलदायी होता है। यह पूजा न केवल मनोवांछित फल देती है, बल्कि वाणी दोष, वाक् शुद्धि और विद्या की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।
देवी मातंगी का महत्व: साधना, वाणी और स्वाधीनता की देवी
देवी मातंगी केवल एक देवी नहीं, बल्कि एक चेतना हैं जो सीमाओं, रूढ़ियों और सामाजिक बंधनों से परे जाकर साधक को आत्मबल प्रदान करती हैं। वे आध्यात्मिक जगत की रहस्यमयी शक्ति हैं, जो मन, बुद्धि और आत्मा को एक दिशा में केंद्रित करती हैं। इनके उपासक जीवन में साहस, ओज और आत्मविश्वास का अनुभव करते हैं।
संस्कृत और संगीत के क्षेत्र में जो लोग सफलता चाहते हैं, उनके लिए मातंगी देवी की साधना अत्यंत लाभकारी होती है। देवी की कृपा से न केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होती है, बल्कि साधक के भीतर एक दिव्य दृष्टि का भी विकास होता है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।