कहानी थोड़ी फिल्मी है: 45 साल बाद सिर की चोट से लौट आई रिखी राम की याददाश्त
16 साल की उम्र में लापता हुए रिखी राम ने 45 साल बाद अपने गांव लौटकर परिवार को गले लगाया, सिर की चोट ने खोई यादें वापस दिलाईं

अक्सर फिल्मी कहानियों में देखा गया है कि किसी हादसे या चोट के चलते याददाश्त चली जाती है और फिर किसी चमत्कारिक मोड़ पर वापस आ जाती है। ऐसा ही अनोखा किस्सा 62 वर्षीय रिखी राम के साथ हुआ, जो 16 साल की उम्र में काम की तलाश में अपने गांव नाड़ी से बाहर निकले थे और लगभग साढ़े चार दशकों तक अपने परिवार से कटे रहे।
1980 में हिमाचल प्रदेश के रिखी राम यमुनानगर (हरियाणा) गए थे, जहां उन्हें एक होटल में नौकरी मिली। लेकिन एक दिन अंबाला के पास एक सड़क हादसे में सिर पर गंभीर चोट लगी। इस चोट ने उनकी पूरी याददाश्त मिटा दी। उन्हें अपना नाम या परिवार की कोई जानकारी नहीं रही। उनके साथी ने उन्हें नया नाम, रवि चौधरी, दिया और इसी नाम के साथ उन्होंने नई जिंदगी शुरू की।
समय के साथ रवि चौधरी मुंबई के दादर गए, फिर नांदेड़ (महाराष्ट्र) में एक कॉलेज में नौकरी मिलने पर वहीं बस गए। 1994 में उन्होंने शादी की और दो बेटियों और एक बेटे के साथ स्थिर जीवन बिताया। रिखी राम अब तक अपने वास्तविक घर और पहचान से अनभिज्ञ थे।
चोट ने लौटाई पुरानी यादें
साल 2025 में, रिखी राम को एक मामूली चोट लगी। इसके बाद उनके सपनों में पुराने दृश्य आने लगे — गांव का आम का पेड़, सतौन की गलियां, घर का आंगन। शुरू में उन्होंने इसे सपने समझा, लेकिन धीरे-धीरे एहसास हुआ कि ये उनकी खोई यादें थीं।
अपने अतीत को खोजने के लिए रिखी राम ने कॉलेज के एक छात्र की मदद ली। उन्होंने गूगल पर सतौन और नाड़ी से जुड़े नंबर खोजे। एक स्थानीय कैफे के जरिए उन्हें अपने गांव के रुद्र प्रकाश का नंबर मिला। रुद्र प्रकाश ने उनकी कहानी सुनी और परिवार के बड़े सदस्य एम. के. चौबे से संपर्क कराया। सभी पक्षों ने पुष्टि की कि यह वही रिखी राम हैं।
45 साल बाद भावुक मिलन
15 नवंबर 2025 को रिखी राम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपने गांव नाड़ी पहुंचे। भाई-बहनों ने फूल मालाओं और बैंड के साथ जोरदार स्वागत किया। छोटे भाई दुर्गा राम भावुक होकर बोले, "हमें विश्वास नहीं हो रहा कि 45 साल बाद हमारा भाई हमारे बीच है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं।"
नई पहचान और लौटे अपने मूल जड़
एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि रिखी राम का बचपन ब्राह्मण परिवार में बीता था। हरियाणा में याददाश्त खोने के बाद उन्हें राजपूत पहचान दी गई थी। अब, यादें लौटने के बाद उन्होंने अपनी वास्तविक पहचान को अपनाया और अपने परिवार और गांव में अपने मूल जड़ों से जुड़ गए।
जीवन में अनपेक्षित मोड़ और चमत्कार कैसे बदल जीवन की धारा बदल सकते हैं, ये रिखी राम के जीवन यात्रा से साफ नज़र आता है। रिखी राम की सच्ची कहानी न केवल एक फिल्मी कहानी जैसी है, बल्कि यह परिवार, यादों और पुनर्मिलन की भावनाओं का मानवीय पहलू भी उजागर करती है।
यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।
