सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, सरकार हमें हल्के में ले रही हैं, पुलिस हिरासत में मौतें अब देश नहीं करेगा बर्दाश्त

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस हिरासत में बढ़ती मौतों पर कड़ा रुख दिखाया और कहा कि सरकारें आदेश को हल्के में ले रही हैं. CCTV रिपोर्ट 16 दिसंबर तक नहीं आई तो शीर्ष अधिकारी कोर्ट में पेश होंगे.

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, सरकार हमें हल्के में ले रही हैं, पुलिस हिरासत में मौतें अब देश नहीं करेगा बर्दाश्त
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जिस लहजे में अपनी बात रखी वह साफ बताता है कि अदालत इस मामले को मामूली नहीं मान रही. जजों ने कहा कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतें अब देश बर्दाश्त नहीं करेगा और जिस तरह राज्यों ने कोर्ट के आदेश को हल्के में लिया है वह खुद एक चिंता की बात है.

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्यों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि थानों में CCTV कैमरों से जुड़ी रिपोर्ट लगातार लंबित है और यह लापरवाही अब नहीं चलेगी. अदालत ने साफ कर दिया कि 16 दिसंबर तक रिपोर्ट जमा नहीं हुई तो संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव और केंद्रीय एजेंसियों के निदेशक को खुद कोर्ट में पेश होकर कारण बताना पड़ेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने यह रुख ऐसे समय में अपनाया है जब सितंबर 2025 में दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में राजस्थान में 7 से 8 महीनों में 11 हिरासत मौतों का खुलासा हुआ था. उसी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था और 14 अक्टूबर को सभी राज्यों से थानों में CCTV कैमरों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. लेकिन अब तक केवल 11 राज्यों ने जवाब दिया है.

सुनवाई के दौरान अदालत की नाराजगी साफ दिखी. जस्टिस नाथ ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर रिपोर्ट देने में इतनी देर क्यों हो रही है और क्या केंद्र अदालत को हल्के में ले रहा है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वीकार किया कि कस्टोडियल डेथ किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं की जा सकती और तीन सप्ताह में हलफनामा देने की बात कही.

अमिकस क्यूरी सिद्धार्थ दवे ने अदालत को बताया कि कई राज्यों ने CCTV लगाने का बजट तक जारी नहीं किया. कहीं कैमरे लगे ही नहीं और जहां लगे हैं वे महीनों से खराब पड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुनिया के कई देशों में पुलिस फुटेज की लाइव स्ट्रीमिंग तक होती है और भारत में अब भी थानों में कैमरों की बुनियादी व्यवस्था पूरी नहीं हो सकी.

बेंच ने मध्य प्रदेश की पहल की तारीफ की. राज्य ने हर थाने को कंट्रोल रूम से जोड़ने की व्यवस्था की है. अदालत ने कहा कि बाकी राज्यों को भी इसी तरह ठोस कदम उठाने होंगे ताकि हिरासत में होने वाली मौतों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोका जा सके.

यह मामला नया नहीं है. सुप्रीम कोर्ट 2018 और फिर 2020 में भी सभी राज्यों को CCTV लगाने का आदेश दे चुका है. पुलिस थानों के मेन गेट, बैरिक, गलियारों, रिसेप्शन और लॉक अप के आसपास तक कैमरे लगे होने चाहिए ताकि किसी भी घटना को नज़रअंदाज़ न किया जा सके. लेकिन आदेशों के बावजूद कई राज्यों में स्थिति जस की तस बनी हुई है.

सुप्रीम कोर्ट का सख्त लहजा इस बात का संकेत है कि अदालत अब इस मसले को हल्के में नहीं छोड़ेगी. हिरासत में मौतों को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं वे अब सीधे शासन व्यवस्था की जवाबदेही पर हैं और अदालत ने साफ कर दिया है कि 16 दिसंबर एक आखिरी मौका है. अगर इस बार भी जवाब नहीं आया तो शीर्ष अधिकारियों को कोर्ट में पेश होना होगा.

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