वैशाख पूर्णिमा 2025, लक्ष्मी-विष्णु पूजन और पुण्य प्राप्ति का पावन योग, जानिए स्नान-दान के श्रेष्ठ मुहूर्त और धार्मिक महत्व

वैशाख पूर्णिमा 2025, लक्ष्मी-विष्णु पूजन और पुण्य प्राप्ति का पावन योग, जानिए स्नान-दान के श्रेष्ठ मुहूर्त और धार्मिक महत्व
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हिंदू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा तिथि का विशेष स्थान है, लेकिन वैशाख पूर्णिमा को सबसे पुण्यदायी और विशेष माना गया है। यह दिन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि दान, स्नान और व्रत के माध्यम से आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर होने का अवसर भी देता है। इस वर्ष 2025 में वैशाख पूर्णिमा का पर्व 12 मई, सोमवार को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा।

कब है वैशाख पूर्णिमा और क्या हैं शुभ मुहूर्त?

पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 11 मई की रात 8:01 बजे से हो रहा है, जो 12 मई की रात 10:25 बजे तक रहेगा। इस अवधि में ब्रह्म मुहूर्त — जो आत्मिक शुद्धि और ध्यान-साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है — सुबह 4:08 से 4:50 बजे तक रहेगा। वहीं, अभिजीत मुहूर्त, जो किसी भी शुभ कार्य के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, दोपहर 11:51 से 12:45 बजे तक रहेगा। इन दोनों मुहूर्तों में गंगा स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है।

विष्णु-लक्ष्मी पूजन से होती है सुख-समृद्धि की प्राप्ति

शास्त्रों में उल्लेख है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में धन, सुख और शांति का वास होता है। माता लक्ष्मी को इस दिन कमल पुष्प और खीर का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पीले वस्त्र धारण कर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से धन वृद्धि और आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है। यह दिन दांपत्य जीवन की सुख-शांति के लिए भी श्रेष्ठ माना जाता है।

स्नान-दान का धार्मिक महत्व और लाभ

वैशाख पूर्णिमा के दिन किए गए दान और गंगा स्नान का फल कई यज्ञों और व्रतों के बराबर माना गया है। इस दिन दान में वस्त्र, अन्न, जल, छाता, चप्पल, गाय और तांबे के पात्र देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेषकर निर्धनों और ब्राह्मणों को अन्न-जल देना अत्यंत शुभ माना गया है। साथ ही, इस दिन व्रत करने से पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।

वैशाख पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, पुण्य अर्जन और ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने का सुनहरा अवसर है। यह दिन आध्यात्मिक जागरण, सदाचरण और मानवीय संवेदनाओं के पोषण का पर्व है। 12 मई को आने वाली यह पूर्णिमा, श्रद्धालुओं को भक्ति, सेवा और तप के माध्यम से परम शांति और सुख की ओर अग्रसर होने का निमंत्रण देती है। इसलिए, इस दिन को व्यर्थ न जाने दें और भक्ति भाव से स्नान, दान और पूजन अवश्य करें।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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