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Padman Review: पीरियड्स पर शर्म नहीं गर्व करना सिखा गए अक्षय कुमार

Padman Review: पीरियड्स पर शर्म नहीं गर्व करना सिखा गए अक्षय कुमार

पीरियड्स आना और मेंस्ट्रुअल...Editor

पीरियड्स आना और मेंस्ट्रुअल साइकिल आज भी समाज में महिलाओं के लिए शर्म की बात है। खासकर तब जब बात मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों की हो, वहां शर्म ही धर्म है। लड़की के बड़े होने पर धूम-धाम से उसका स्वागत तो किया जाता है लेकिन जैसे ही वो पांच दिन आते हैं लड़की अछूत हो जाती है और घर के किसी कोने में धकेल दी जाती है। लड़कियां वो भी स्वीकार कर लें तो भी शर्म के नाम पर उन्हें बार बार प्रताड़ित किया जाता है। जिस समय लड़कियों को सबसे ज्यादा केयर और साफ-सफाई की आवश्यकता होती है उन्हें गंदगी में रहने को कहा जाता है।


लड़कियों और महिलाओं को इस गंदगी की वजह और उन दिनों की दुश्वारियों में किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है कुछ ऐसी कहानी कहने की कोशिश कर रही है "पैडमैन"। फिल्म के कई सीन और कई डायलॉग झकझोरते हैं। फिल्म में समाज की कुरीतियों को, शर्म को, संवेदना को भर भर कर दिखाया गया है। पीरियड्स को गंदी चीज कहने वालों की सोच शायद फिल्म को देख कर बदले। महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली सरकार शायद महिला की पहली सबसे बड़ी जरूरत सैनिटरी पैड पर जीएसटी हटाए। उसे सस्ता करने के लिए कुछ कदम उठाए कि हर गरीब महिला उन दिनों में साफ-सफाई का ध्यान रखे और खुद को भी कई तरह की होने वाली बीमारियों से बचा सके।
जब सिनेमा की परिकल्पना की गई थी तो उसका एक मकसद समाज में मनोरंजन के साथ जागरूकता फैलाना था। लेकिन फिल्म उद्योग पर मनोरंजन और कॉमर्स इतना हावी हुआ कि मकसद पीछे ही रह गया। 'पैडमैन' आज की जरूरत की फिल्म है जिसे परिवार के साथ देखना चाहिए। परिवार के साथ अगर हिचकिचाहट हो रही हो तो लड़कों को समूह में जाकर इस फिल्म को देखना चाहिए जैसे वो दसवीं की बायलॉजी की किताब के पिछले पन्नों को पढ़ते हैं।

समाज को खासकर महिलाओं को यह समझना होगा कि हर महीने आने वाला मेंस्ट्रूअल साइकिल महिला वाली बात या कोई शर्म की बात नहीं है। सैनिटरी पैड खरीदने जाने के दौरान शर्माने, घबराने या फिर काली पन्नी में रखने की जरूरत नहीं है। माहवारी (मेंस्ट्रूअल साइकिल) एक सच्चाई है जिसे हर किसी को जानना ही चाहिए। माहवारी और महिला को ध्यान में रखकर आर बाल्की ने एक बेहतरीन फिल्म बनाई है। सब्जेक्ट नया और समाज को जागरूक करने वाला है। अक्षय कुमार और राधिका आप्टे की एक्टिंग रियल लगती है।

फिल्म शुरुआत से ही कसी हुई है। वह अपनी पत्नी की 'औरतों वाली बात' यानी माहवारी के दौरान गंदे कपड़े और राख के उपयोग किए जाने की बात जानकर इतना विचलित हो जाता है कि वो खुद सैनिटरी पैड बनाने की ठान लेता है। कहानी 16 साल पहले की है। जब अपर क्लास की महिलाएं भी टेलीविजन पर पैड का विज्ञापन आने पर इधर-उधर देखा करती थीं और पुरुष बातों में लग जाया करते थे। उस दौर में अरुणाचलम मुरुगनंथम की सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म पैडमैन के जरिए निर्देशक आर. बाल्की और अक्षय कुमार ने मेंस्ट्रुअल हाइजीन के प्रति लोगों को जागरूक करने की दमदार पहल की है।
लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) को गायत्री (राधिका आप्टे) से शादी करने के बाद पता चलता है कि माहवारी के दौरान उसकी पत्नी पांच दिनों तक न केवल घर के बाहर रहती है बल्कि साफ-सफाई की जगह गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती है। वह उसकी समस्या को खत्म करने के लिए खोज करना शुरू करता है और सैनिटरी पैड लेकर आता है। राधिका आप्टे महंगा पैड देखकर बौखला जाती है और इसे औरत के लिए शर्म की बात मानती है। लक्ष्मी को डॉक्टर से पता चलता है कि उन दिनों में महिलाएं गंदे कपड़े, राख, छाल आदि का इस्तेमाल करके कई जानलेवा और खतरनाक रोगों की शिकार होती हैं।

कई महिलाएं तो बांझ तक हो जाती हैं। फिर वह खुद सैनिटरी पैड बनाने की कवायद में जुट जाता है। इस सिलसिले में उसे पहले अपनी पत्नी, बहन, मां के साथ साथ समाज से भी दुत्कारा जाता है। गांववाले और समाज उसे एक तरह से बहिष्कृत कर देते हैं, मगर जितना वह जलील होता जाता है उतनी ही उसकी सैनिटरी पैड बनाने की जिद पक्की होती जाती है। परिवार उसे छोड़ देता है, मगर वह अपनी धुन नहीं छोड़ता और आगे इस सफर में उसकी जिद को सच में बदलने के लिए दिल्ली की एमबीए स्टूडेंट परी (सोनम कपूर) उसका साथ देती है।

समाज को अलग हटकर फिल्म देने वाले आर बाल्की ने महिलाओं के मुद्दे को खूब भुनाने की कोशिश की है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मासिक धर्म को लेकर समाज में जितने भी टैबू हैं उनसे पार पाने के लिए यह आज के दौर की सबसे जरूरी फिल्म है, मगर कई जगहों पर बाल्की भावनाओं में बहते नजर आए हैं। एक बात जो फिल्म देखने के दौरान समझ नहीं आती कि बाल्की ने फिल्म के लिए मध्यप्रदेश को क्यों चुना है। अगर वो साउथ के बैकग्राउंड पर भी बनाई जाती तो उसका मर्म उतना ही रहता। फिल्म में सोनम कपूर और राधिका आप्टे की एक्टिंग भी बहुत रीयल है। अक्षय कुमार फिल्म का सबसे मजबूत पहलू हैं। उन्होंने पैडमैन के किरदार के हर रंग को दिल से जिया है। अमित त्रिवेदी के संगीत में 'पैडमैन पैडमैन', 'हूबहू', 'आज से मेरा हो गया' जैसे गाने फिल्म की रिलीज से पहले ही हिट हो चुके हैं।

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