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श्रावण मास में बाल और दाढ़ी कटवाना क्यों माना जाता है वर्जित? जानें छौर कर्म का धार्मिक और वैज्ञानिक आधार

श्रावण मास में बाल और दाढ़ी कटवाना क्यों माना जाता है वर्जित? जानें छौर कर्म का धार्मिक और वैज्ञानिक आधार
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श्रावण मास, जो कि भगवान शिव को समर्पित होता है, हिंदू पंचांग में अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक माना जाता है। इस महीने की हर तिथि, हर दिन, हर सोमवार का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। यह समय भक्तों के लिए न केवल व्रत और उपवास का होता है, बल्कि नियम और अनुशासन का भी होता है।

इन्हीं नियमों में एक प्रमुख नियम है – सावन में बाल और दाढ़ी न कटवाना। यह परंपरा केवल मान्यता नहीं बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक भावना और शारीरिक संतुलन से भी जुड़ी हुई है। इस प्रक्रिया को धर्मशास्त्रों में "छौर कर्म" कहा गया है, जिसकी सावन मास में मनाही है।

छौर कर्म क्या है? और सावन में इसे क्यों माना जाता है निषिद्ध

छौर कर्म का अर्थ होता है शरीर के बाल, मूंछ या दाढ़ी की कटाई या शेविंग करना। पुरातन ग्रंथों और शास्त्रों में उल्लेख है कि श्रावण मास के दौरान भगवान शिव स्वयं वनवासी और तपस्वी रूप में रहते हैं, और उनके भक्त भी उसी स्वरूप को धारण करने की प्रेरणा लेते हैं।

इसलिए इस माह को त्याग, तपस्या और संयम का प्रतीक माना जाता है। बाल और दाढ़ी न कटवाने से व्यक्ति साधु और सन्यासी के स्वरूप में आता है, जो शिव साधना के अधिक निकट माने जाते हैं। छौर कर्म करना इस तपस्वी भावना को खंडित करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या कहता है यह नियम?

श्रावण मास में अक्सर मॉनसून का चरम काल होता है। इस दौरान वातावरण में नमी और संक्रमण की संभावनाएं अधिक होती हैं। ऐसे में हेयर कटिंग या शेविंग जैसी प्रक्रिया से त्वचा में कटाव या एलर्जी की आशंका रहती है, जो बैक्टीरियल संक्रमण का कारण बन सकती है।

इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह सलाह दी जाती है कि इन दिनों में जब तक आवश्यक न हो, शरीर के बालों को छूने से बचा जाए। यह परंपरा कहीं न कहीं स्वास्थ्य रक्षा का भी संकेत देती है।

धार्मिक मान्यता: शिवतत्व के निकट जाने का मार्ग

सावन में उपवास, ब्रह्मचर्य, संयम, और भक्ति जैसे मार्गों को अपनाकर भक्त भगवान शिव के चरणों में स्वयं को समर्पित करते हैं। बाल-दाढ़ी बढ़ाना, सादगी से रहना, गेरुआ वस्त्र धारण करना आदि विधियां शिव की तपस्वी छवि को आत्मसात करने की ओर संकेत करती हैं।

इसी कारण बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा केवल एक सामाजिक परिपाटी नहीं, बल्कि शिवभक्ति का एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ रखती है।

परंपरा, विज्ञान और भक्ति का संतुलन है छौर कर्म की यह मर्यादा

श्रावण मास केवल व्रत-उपवास का महीना नहीं है, यह एक आत्मिक अनुशासन का काल है। इसमें भक्त ना केवल बाहरी पूजा करते हैं बल्कि अपने व्यक्तित्व, आचरण और जीवनशैली को भी अनुशासित करते हैं। बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा इस संकल्प का हिस्सा है, जो शिव भक्ति, स्वास्थ्य और साधना – तीनों का संतुलन साधती है।

यह लेख/समाचार लोक मान्यताओं और जन स्तुतियों पर आधारित है। पब्लिक खबर इसमें दी गई जानकारी और तथ्यों की सत्यता या संपूर्णता की पुष्टि की नहीं करता है।

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