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नेपाल में शंकराचार्य की पीठ खुलने पर भारत में बवाल, लेकिन भारत में हैं शंकराचार्यों की 32 पीठ

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नेपाल में शंकराचार्य की एक पीठ खुलने पर भले बवाल मचा हो, लेकिन भारत में खुद को पीठ बनाकर शंकराचार्य कहने वालों की संख्या 32 हैं।

दक्षिण भारत के साधु संत तो स्वयं को महंत, श्रीमहंत अथवा मंडलेश्वर कहलाने के स्थान पर शंकराचार्य कहलाना पसंद करते हैं। यदि वैष्णव संप्रदाय के रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य की गिनती की जाए तो गिनना मुश्किल है। बैरागियों में बेशक तीन अणियां हों, लेकिन उनके खालसों एवं गुरुओं की संख्या हजारों में है। जबकि आदि रामानंदाचार्य ने केवल काशी में एक पीठ बनाई थी।

संन्यासियों, बैरागियों, उदासियों एंव निर्मलों के केवल 13 अखाड़े हैं। आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य के देश में चार मठाम्नायों की चार पीठ चारों दिशाओं में स्थापित की थी। केरल के कालड़ी ग्राम से शास्त्रार्थ के माध्यम से दिग्विजय के लिए निकले आदि शंकर ने जब संपूर्ण भारत के विद्वानों को जीत लिया, तब कहीं जाकर उन्हें जगद्गुरु की उपाधि काशी की विद्वत परिषद ने दी थी।

शंकराचार्य ने जोशीमठ, श्रंगेरी, द्वारिका और पुरी में चार पीठों की स्थापना की। समस्त अखाड़ों और देश के समस्त संतों को क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग पीठों से जोड़ा गया। साधुओं के बीच होने वाली खूनी संघर्ष को मिटाने के लिए दस नाम संन्यास परंपरा स्थापित की। कालांतर में करपात्री महाराज द्वारा सात नई शंकराचार्य पीठों की स्थापना के बाद शंकराचार्य बनने की बाढ़ आ गई। आज देश भर में स्वयं को शंकराचार्य कहने वालों और स्वयंभू पीठ स्थापित करने वालों की संख्या 28 हो गई है। शंकराचार्यों की आदि पीठों को मिला दें तो यह संख्या 32 हो जाती है।

अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि के अनुसार दक्षिण भारत के चार राज्यों में कोई संत स्वयं को महंत नहीं लिखता। सभी अपने नाम के साथ श्रीश्री 108, श्रीश्री 1008 आदि तक जोड़ना पसंद नहीं करते। दक्षिण के संत स्वयं को सीधे-सीधे शंकराचार्य लिखते हैं। हरि गिरि ने माना कि शंकराचार्य केवल चार हैं। यह और बात है कि काशी में विभक्त हो चुकी विद्वत परिषद और कईं फाड़ हो चुके धर्म महामंडल ने एक-एक पीठ पर तीन-तीन शंकराचार्य बैठा दिए हैं।

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