BHU हिंदी दिवस 2025: जब हिंदी और विज्ञान एक मंच पर आए साथ!
हिंदी दिवस 2025 पर BHU में अन्विति समारोह का आयोजन, अचिन्त्य हिंदी विशेषांक का विमोचन और हिंदी व विज्ञान के संबंध पर जोर।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के विज्ञान संस्थान के महामना सभागार में आज हिंदी दिवस 2025 के अवसर पर हिंदी प्रकाशन समिति द्वारा आयोजित अन्विति - हिंदी दिवस समारोह का भव्य आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम ने मातृभाषा हिंदी, विज्ञान और विश्वविद्यालय के बीच गहरे संबंधों को रेखांकित करते हुए हिंदी की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्ता को उजागर किया।
इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथियों के विचारों ने श्रोताओं को गहरे तक प्रभावित किया। इस अवसर पर हिंदी विशेषांक ‘अचिन्त्य’ का विमोचन भी किया गया, जो विज्ञान की हिंदी में सशक्त अभिव्यक्ति का प्रतीक है।
समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और कुलगीत के साथ हुआ। हिंदी प्रकाशन समिति की अचिन्त्य टीम ने पत्रिका की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हिंदी न केवल हमारी मातृभाषा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और एकता का प्रतीक भी है। अन्विति समारोह का उद्देश्य हिंदी को विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक सशक्त करना है।”
कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में हिंदी को शिक्षा और विज्ञान का महत्वपूर्ण माध्यम बताया। उन्होंने कहा, “हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत का हिस्सा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय जैसे संस्थान हिंदी को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे अत्यंत ख़ुशी है की अचिन्त्य जैसे प्रकाशन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, जो यह दर्शाते हैं कि हिंदी में भी जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को सरलता और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है। अब समय आ गया है कि हिंदी प्रकाशन समिति के कार्यो को पूरे विश्व में फैलाने का समय आ गया है। पॉडकास्ट के माध्यम से बीएचयू के कार्यो को लोगों तक पहुँचना चाहिए।”
उन्होंने डिजिटल युग पर बल देते हुए कहा, “आज के दौर में, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का हिस्सा बन रही हैं, हमें हिंदी को इन क्षेत्रों में भी सशक्त करना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी भाषा को वैश्विक मंच पर ले जाएँ।”
डॉ. मयंक नारायण सिंह ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए राजनयिक श्री दिलीप सिन्हा की पुस्तक “तिब्बत” प्रस्तुत की। श्री दिलीप सिन्हा ने कहा, “भारतीय डायस्पोरा पूरे विश्व में फैला हुआ है, और कहीं भी कोई घटना घटती है उसका असर भारत पर पड़ता है। इसलिए हिंदी के वैश्विक परिदृश्य में महत्व लगातार बढ़ रहा है।”
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बोलते हुए अमेरिका, रूस और चीन के समीकरणों, शीत युद्ध की वापसी और दक्षिण एशिया की परिस्थितियों पर चर्चा की। साथ ही कहा:
“हिंदी आज केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह विश्व की 61 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, और यह संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हिंदी हमारी सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर ले जाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।”
उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे हिंदी को लेखन, अनुसंधान और डिजिटल प्लेटफॉर्म में भी अपनाएँ।
कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण अचिन्त्य हिंदी विशेषांक का विमोचन रहा। इसमें BHU के छात्रों और शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए लेख शामिल हैं, जिनमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण जैसे विषयों को हिंदी में प्रस्तुत किया गया है।
प्रो. चतुर्वेदी ने कहा, “यह विशेषांक हिंदी को वैज्ञानिक लेखन में एक नया आयाम देगा। यह न केवल छात्रों को प्रेरित करेगा, बल्कि यह भी सिद्ध करेगा कि हिंदी में किसी भी विषय को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है।”
समापन सत्र में हिंदी प्रकाशन समिति के सदस्य डॉ अभिषेक द्विवेदी ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा और कहा, “यह समारोह केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमारी मातृभाषा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी को अपने जीवन के हर क्षेत्र में अपनाएँगे।”
कार्यक्रम का संचालन डॉ चंद्रशेखर त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर विज्ञान संस्थान के कार्यवाहक निदेशक प्रो. आरके अस्थाना, प्रो. एम. सिंगरवेल, प्रो. वी. के. तिवारी, डॉ. पवन दूबे, डी. रजनीश कुमार, डॉ. राघव मिश्र, प्रो. एस.पी. सिंह, प्रो. उमाशंकर, प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे, डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, डॉ. बाला लखेंद्र, डॉ. दया शंकर त्रिपाठी समेत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।