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जन्मदिन विशेष: कोई ऐसा साल न गुजरा जब जगजीत सिंह याद न आए

जन्मदिन विशेष: कोई ऐसा साल न गुजरा जब जगजीत सिंह याद न आए

नई दिल्ली: जगजीत सिंह को गए 6...Editor

नई दिल्ली: जगजीत सिंह को गए 6 साल हो गए हैं. लेकिन क्या कोई ऐसा पल आपको याद है जब गजल सुनते वक्त ऐसा लगा हो कि जगजीत नहीं हैं! शायद कभी नहीं! क्योंकि जगजीत सिंह जैसे कलाकार कभी हमारे बीच से जाते ही नहीं. फिर क्यों आज हम उन्हें विशिष्ट तरीके से याद कर रहे हैं.

दरअसल, आज जगजीत सिंह का जन्मदिन है. 8 फरवरी 1941 के दिन राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे इस अद्भुत कलाकार ने हमें गजल से ऐसा रूबरू कराया कि हम और आप शायद ही अब इससे कभी उबर पाएं. यही वजह है कि 2011 में उनकी मौत के बाद का शायद ही कोई दिन ऐसा है, जब गजल सुनते वक्त वो हमें याद नहीं आए हो. कहां मिलेगा ऐसे मिजाज का फनकार जो आपको हर मूड में संगीत की दुनिया की सैर कराए. गजल हो या भजन, गीत हो या शास्त्रीय संगीत. जगजीत सिंह हर फन में माहिर थे. यही खूबी थी कि जगजीत को चाहने वालों में 15 साल के किशोर से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं.
जिस विधा में गए, वो जहां उनका हुआ
गायकी में महारथ हासिल करने के लिए जगजीत सिंह ने पंडित छगनलाल शर्मा और उस्ताद जमाल खान से शिक्षा ली थी. बेहद उम्दा आवाज के धनी जगजीत को इसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. शुरुआती दिनों में आकाशवाणी (तब ऑल इंडिया रेडियो) के जालंधर स्टेशन पर गाते थे वो. इस दौरान गायन से लेकर गीत लिखने तक का काम किया. 1965 में वे मुंबई (तब बांबे) आ गए. यहां से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ. 'दुश्मन', 'अर्थ', 'प्रेम गीत' से शुरू हुआ ये सफर लंबा चला. लेकिन गजल का साथ छूटा नहीं. इसी बीच चित्रा से मुलाकात हुई. वह पहले से विवाहित थीं. लेकिन संगीत ने दो दिलों को जोड़ दिया. और फिर शुरू हुआ गजल गायकी का शानदार दौर. 70 का दशक जगजीत सिंह के लिए बेजोड़ साबित हुआ. कहा जाता है कि जगजीत और चित्रा सिंह एक बार कनाडा गए. वहां पहले ही प्रोग्राम के बाद लोग उनके इस कदर दीवाने हुए कि कई दिनों तक वह हॉल जगजीत और चित्रा सिंह के नाम पर ही बुक रहा. प्रख्यात भजन गायक अनूप जलोटा ने जगजीत सिंह पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री में कहा था कि एक वक्त था जब जगजीत और चित्रा सिंह को लेकर कनाडा में लोगों को लगता था कि दो सरदार साथ गाएंगे. बाद में पता चला कि ये पति-पत्नी हैं.
सफर में लगा अल्प विराम
गजल के इन दोनों महारथियों का शानदार सफर लगभग एक दशक तक बदस्तूर चलता रहा. 80 के दशक तक आते-आते गजल गायकी में इन दोनों का कोई सानी नहीं रह गया था. गजल के साथ-साथ फिल्मी गीतों में जगजीत का कोई मुकाबला नहीं रह गया था. इस दौरान जगजीत ने कई शायरों और गीतकारों को अपनी आवाज दी. हर गाना हिट होता था और हर गजल जादू कर देती थी. 'होठों से छू लो तुम' गीत इसी दौर का है, जब जगजीत हर संगीतप्रेमी की जुबां पर छाए हुए थे. लेकिन 1990 का वह साल जगजीत और चित्रा सिंह की गायकी के सफर को कुछ समय के लिए रोक गया. दरअसल, इसी साल जगजीत सिंह के 18 वर्षीय पुत्र विवेक की सड़क हादसे में मृत्यु हो गई. यह दर्द दोनों के लिए असहनीय था. चित्रा सिंह ने गाना ही छोड़ दिया. जगजीत भी सदमे में चले गए.
गायकी में लौटे तो अंदाज बदला, जादू कायम
कुछ वर्षों के बाद जगजीत सिंह गजल की दुनिया में फिर लौट आए, लेकिन चित्रा नहीं आईं. अब के जगजीत बदल चुके थे, लेकिन न तो उनकी आवाज में कोई फर्क आया था और न ही उनकी लोकप्रियता में कोई कमी आई थी. जीवन की इस दूसरी पारी में भी जगजीत सिंह को सुनने वालों की कोई कमी न थी. वे अपने गम को जीतकर आए थे. उनके गीतों और गजलों में उनके कद्रदानों को यह फर्क साफ नजर आता था. मगर जगजीत हर दुख को भुलाकर गाते रहे. उनके गाए भजन हों या गीत या फिर गजल, सब पॉपुलर हुए. लेकिन गम को जीत कर लौटे जगजीत का यह सफर अचानक ही रुक जाएगा, यह किसी को मालूम नहीं था. वे लगातार कार्यक्रम कर रहे थे. इसी क्रम में उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ. कुछ हफ्तों तक वे अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते रहे. आखिरकार 10 अक्टूबर 2011 को हमारे बीच से यह कमाल का गायक चला गया.

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